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खग उड़ते रहना जीवन भर

खग! उड़ते रहना जीवन भर!
भूल गया है तू अपना पथ
और नहीं पंखों में भी गति
किंतु लौटना पीछे पथ पर, अरे मौत से भी है बदतर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

मत डर प्रलय-झकोरों से तू
बढ़ आशा-हलकोरों से तू
क्षण में यह अरि-दल मिट जाएगा तेरे पंखों से पिसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

यदि तू लौट पड़ेगा थक कर
अंधड़ काल-बवंडर से डर
प्यार तुझे करने वाले ही, देखेंगे तुझको हँस-हँसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

और मिट गया चलते-चलते
मंज़िल-पथ तय करते-करते
तेरी ख़ाक़ चढ़ाएगा जग उन्नत भाल और आँखों पर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

 

मुझको पुकारा नहीं गया

जिन रास्तों से मुझको पुकारा नहीं गया
उन पर कभी मैं दोस्त दुबारा नहीं गया

सागर की सम्त बढ़ती रही उम्र भर नदी
लहरों के साथ कोई किनारा नहीं गया

देखा था मुस्कुरा के मुझे उसने पहली बार
नज़रों से आज तक वो नज़ारा नहीं गया

हैरत के साथ उससे पशेमां हूँ आज भी
इक ख़्वाब था जो मुझसे सँवारा नहीं गया

तेरे बग़ैर उम्र तो मैंने गुज़ार दी
इक पल मगर सुकूँ से गुज़ारा नहीं गया

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

साथ सब ना चल सकेंगे

साथ सब ना चल सकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
लोग रस्ते में रुकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
दूसरों के आँसू अपनी, आँख से जो भी बहाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

दूसरों को जानते हैं, ख़ुद को पहचाना नहीं है
बात है छोटी मगर, सबने इसे माना नहीं है
बौने क़िरदारों को अक़्सर होता है क़द का गुमां
क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
जो अकेले में कभी ना, आइने से मुँह चुराए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

आवरण भाने लगे तो सादगी का अर्थ भूले
अर्थ की चाहत में पल-पल ज़िन्दगी का अर्थ भूले
छोटी ख़ुशियाँ द्वार पर दस्तकें तो लाईं लेकिन
हम बड़ी ख़ुशियों में छोटी हर ख़ुशी का अर्थ भूले
दूसरों की ख़ुशियों में जो ढूंढकर अपनी ख़ुशी को
भोली-सी मुस्कान हर दम अपने होठों पर सजाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

हर किसी को ये भरम है, साथ है दुनिया का मेला
पर हक़ीक़त में सभी को होना है इक दिन अकेला
ज़िन्दगी ने मुस्कुरा कर बस गले उसको लगाया
जिसने भी ज़िदादिली से ज़िंदगी का खेल खेला
दुनिया में उसको सभी मौसम सुहाने लगते हैं
मौत की खिलती कली पर, भँवरा बन जो गुनगुनाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

जीवन नहीं मरा करता है

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुई आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या है, ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फ़टी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आंगन नहीं मरा करता है

लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों
लाख करे पतझड़ क़ोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बंद न हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’