आधार

जो रेखा खींचना जानता है वह मानता है कि इस दुनिया में अदृश्य कोई नहीं है जो सुधा सींचना जानता है वह मानता है कि इस दुनिया में अस्पृश्य कोई नहीं है मैंने दो-चार रेखाएँ खींचीं तुम साकार हो गए मैंने दो-चार बूंदें डालीं तुम आधार हो गए © Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ