अंधेरे क्या, उजाले क्या

यही कुछ सोचकर तूने न सब काँटे निकाले क्या सफ़र में साथ देते हैं कभी पैरों के छाले क्या ग़रीबों को नहीं मिलती कभी मंज़िल विरासत में हमें दिन-रात चलना है, अंधेरे क्या, उजाले क्या अंधेरी शब थी जुगनू से, मैं कल बचकर निकल आया मिरे अहसास ने पूछा मरासिम तोड़ डाले क्या किया करता हूँ मैं सजदा, वो मस्जिद हो कि गुरुद्वारा सभी भगवान के घर हैं, क़लीसे क्या, शिवाले क्या बुरा हूँ या भला हूँ मैं ये देखेंगे जहाँ वाले किसी इंसान ने ख़ुद पर कभी पत्थर उछाले क्या तलब मुझको वफ़ा की थी, तुम्हें थी भूख पैसे की ‘चरण’ इस दौड़ में तुमने कभी रिश्ते सँभाले क्या © Charanjeet Charan : चरणजीत चरण