तुम हो केवल अपने लिये नितांत प्रश्न करता है मुझसे मेरा वृत्तंत कैसे हो गये तुम प्राण यूँ अशांत दौड़ता फिरता हूँ मैं यहाँ-वहाँ कहाँ-कहाँ पर होता कहीं नहीं। Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर
तुम हो केवल अपने लिये नितांत प्रश्न करता है मुझसे मेरा वृत्तंत कैसे हो गये तुम प्राण यूँ अशांत दौड़ता फिरता हूँ मैं यहाँ-वहाँ कहाँ-कहाँ पर होता कहीं नहीं। Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर