ऐसा क्यों होता है

ऐसा क्यों होता है कि दुनिया की भीड़ में जहाँ लाखों लोग मिलते हैं …एक चेहरा; सिर्फ़ एक चेहरा कभी मुद्दतों में एक बार लगने लगता है अपना-सा चाहे-अनचाहे में खिंचा चला जाता है मन उसकी ही ओर बरबस। ….लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बन पाता है कोई रिश्ता… आख़िर ऐसा क्यों होता है शायद इसलिए कि उनके लिए हमारा चेहरा होता है दुनिया की भीड़ का ही एक ‘हिस्सा’! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग