अतीत

यादों के अजायबघर में संजो कर रख लिया गया अतीत ख़यालों में भविष्य दौड़ाता रहता है घोड़े यह बात दूसरी सवारी कर पाएंगे या नहीं! अतीत भी तो कहाँ दीखता है जैसे का तैसा ‘भूत’ है वह आ खड़ा होता है कभी शक्ल बिगाड़ कर कभी बन-सँवर कर! © Jagdish Savita : जगदीश सविता