बदला-बदला लग रहा पीपल भी देता नहीं, अब तो शीतल छाँव बदला-बदला लग रहा, क्यों पुरखों का गाँव © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल Related posts: बाबुल का रोग ना वो बचपन रहा मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है नैना गिरवी रख लिये छोटा हूँ तो क्या हुआ दौलत की लत क्यों पड़े जो काँटों के पास थे छिना न माखन, हाय भविष्य के फूल पहला-पहला प्यार ये सोना-चांदी हटा छोटा-सा लड़का सागर का उपहास Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’ Anurag Mishra Gair : अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ अनपढ़ माँ