भावुक प्रेम

 

भावुक प्रेम
नहीं…
हूँ.…
और एक सुबकी
तारे, पानी की बूँदें दो-चार
ये तत्त्व हैं उस बहुप्रशिंसित प्रेम के
जो उफनता है
और उफनता ही रहता है
किसी भावुक हृदय में
और भावुकता का नशा
मात्र शराब का
जो चढ़ता है उतरने को
और तोड़ देता है
तन को
मन को

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर