कैसट

बीते हुए दिनों की कैसट जाने कौन चला देता है ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ! कोहरा ढके ढलान दहाड़ते जल-प्रपात जंगल और खलिहान हाट त्यौहार और मेले सम्पर्कों की भीड़ किताबें यात्रा पिकनिक स्कूल को जाते बच्चे छैला बाबू माँ, बहिनें, भाई बेकार बाप सठियाया बुङ्ढा गीतों का दीवाना ये सब मैं ही हूँ विश्वास न होता ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ © Jagdish Savita : जगदीश सविता