चट्टान

सुनते हो जी, सो गए क्या? ‘हूं…. नहीं तो’ ‘क्या बजा होगा?’ ‘एक’ ‘अच्छा, अभी एक ही बजा है!’ डबल बैड पर 36 का आँकड़ा बनाए लिटे मैं और मेरी वृद्धा पत्नी कभी वह ‘हाय मेरी मैया’ कह कर कूल्हने लगती, कभी मैं ‘हरे राम हरे कृष्ण’ के साथ ठण्डी आहें भर कर रह जाता अनर्गल बातें ‘शीला की लड़की तो अब बड़ी हो गई होगी’ ‘शादी के लायक?’ ‘अजी उसके तो एक बेटा भी हो गया’ ‘तुझे कैसे पता?’ ‘थाने भवन वाली कह रही थी, उसके मैके वालों की रिश्तेदारी में ही तो ब्याही है’ ‘ठीक…’ ‘महंगाई अभी और बढ़ेगी 80 रुपए किलो दाल कभी सोचा था’ ‘आग लगे इस मायावती को जीना मुश्क़िल कर दिया…’ ‘बहू को कितनी बार कहा पुलाव बनाया करे तो दो बड़ी इलायची और ज़रा-सा गोला डाल लिया कर बायला असर कम हो जाएगा… पर सुनता कौन है?’ ‘देखो जी मैं तो अब डॉक्टर के जाने वाली नहीं आज ख़ून टैस्ट आज बलगम टैस्ट बस बहुत हो गया….’ ‘यूँ सोचूँ थी म्हारी ममता को भी भगवान अच्छी-सी चीज दे देता अंशु को छोटा भैया मिल जाता शाकुम्भरी माँ का छतर चढ़ाऊंगी..’ ‘चढ़ा लेना बाबा… भण्डारा भी करा देना ठीक है?’ 36 का आँकड़ा 63 में बदल जाता थोड़ा-सा और बढ़ जाता बातों का तापमान ‘ममता की माँ भगवान मुझे उठा ले जल्दी उठा ले.. तेरे बिना तो मुझसे एक रात भी…..’ ‘कैसी बातें करते हो जी मुझे तो ज्योतिषी ने बता रखा है सुहागिन ही जाऊंगी… देख लेना…’ …देख लिया ज्योतिषी ने ठीक ही कहा था डबल बैड पर अकेला ही पड़ा छटपटा कर आगे धकेलने में लगा हूँ समय की यह भरकम चट्टान! © Jagdish Savita : जगदीश सविता