छोड़कर जा रहा हूँ मैं घर किसलिए

छोड़कर जा रहा हूँ मैं घर किसलिए कर रहा हूँ मुसलसल सफ़र किसलिए तुम ही दिखती नहीं जब मुझे दूर तक उठ रही है मेरी ये नज़र किसलिए सिर्फ़ नेकी तेरी तेरे संग जायेगी जोड़ता फिर रहा है तू जर किसलिए जबकि हर पल ही अब वो मेरे साथ हैं हो ज़माने का फिर मुझको डर किसलिए हो न हो इसमें है तेरी ख़ुशबू बसी वरना महका है मेरा ये घर किसलिए ख़ूबियाँ देवता की थी इसमें सभी फिर भी इसां बना जानवर किसलिए जिन परिंदों की क़िस्मत में पिंजरा लिखा उनको तूने दिये थे ये पर किसलिए © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल