कम्प्यूटर

कम्प्यूटर! आज के युग में तुम नहीं हो महज एक मशीन या सुविधाओं का बक्सा। नहीं रहा है सीमित तुम्हारा दायरा चार बाई छह की कम्प्यूटर टेबल तक। क्योंकि छा गए हो तुम मानव के दिमाग़ जीवन और दिल पर भी! बेहद आसान जान पड़ती है तुम्हारी कार्य-पद्धति सुविधाभोगी मानव को। सो ‘माउस’ को ‘राइट क्लिक’ कर जब जी चाहे खोल लेता है सम्बन्धों की नई ‘विन्डो’ और कार्य पूरा हो जाने पर झट से ‘क्लोज़’ भी कर देता है उसे। स्वार्थ के चलते, किसी भी रिश्ते को ‘अन-डू’ कर देना या फिर ‘री-डू’ कर लेना, कितना आसान हो गया है अब…. अलग-अलग ‘ई-मेल अकाउंट्स’ के द्वारा अलग-अलग ‘प्रोफाइल्स’ के लोगों से मिलना, सम्बन्ध बनाना, और छिपाए रखना एक ‘आई डी’ के सम्बन्धों को दूसरी ‘आई डी’ से। किसी को भी कभी भी ‘मिनिमाइज़’ कर देना मतलब, मौजूद रहेगा वह स्क्रीन के एक कोने में ही दृष्टि सीमा के भीतर पर ज़रूरत नहीं है उसकी अभी इसलिए वो भी पूरी दृष्टि का केन्द्र बने यह ज़रूरी नहीं। सचमुच! कितना सरल है असुविधा के ‘वायरस’ का ‘एलर्ट’ देखकर पूरे सिस्टम को ‘एन्टी वायरस स्कैन’ कर देना और ‘डिलीट’ कर देना कुछ सम्बन्धों की फ़ाइलें सिस्टम की मेमोरी से। या ‘विन्डो-करप्ट’ होने पर ‘सी-ड्राइव फॉरमेट’ कर के नई ‘विन्डो इन्स्टॉल’ कर लेना! कम्प्यूटर….! मनुष्य भी अब रह गया है फ़क़त मशीन होकर तुम्हारी तरह अपने ही हाथ के ‘माउस’ में खिलौने की सूरत! तुम्हारी ही तरह ख़त्म हो गई हैं उसके मन की संवेदनाएँ मनुष्य इस युग में कम्प्यूटर ही हो गया है! क्योंकि मशीन में ही मन नहीं होता सिर्फ़ होती है ….एक बॉडी ….एक केबिनेट ….और कुछ डिवाइज़ें! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग