दर्द की जागीर बख़्शी है

कभी सोचूँ मुझे क्यूँ दर्द की जागीर बख़्शी है कभी सोचूँ मुझे ये किसलिए तक़दीर बख़्शी है सुना है इम्तिहाँ होते हैं केवल ख़ास लोगों के ख़ुदा ने ख़ास समझा तो मुझे ये पीर बख़्शी है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी