दिल मेरा तेरी रहगुज़र में नहीं

दिल मेरा तेरी रहगुज़र में नहीं फ़ासला अब मेरी नज़र में नहीं मेरा साया मेरी नज़र में नहीं कोई साथी भी अब सफ़र में नहीं ये मुक़द्दर मिले, मिले न मिले चाह मंज़िल की किस बशर में नहीं दिन ढला है कि रात बाक़ी है ताब इतनी भी अब नज़र में नहीं जाने किस सम्त बढ़ रहे हैं क़दम होश इतना भी अब सफ़र में नहीं खेलता हूँ हर एक मुश्क़िल से हौसला क्या मेरे जिगर में नहीं ढूंढता फिर रहा हूँ मुद्दत से ‘मीत’ मिलता किसी नगर में नहीं © Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’