दिन निकलेगा

रात कटेगी, दिन निकलेगा यह क्रम तो निर्धारित ही है दिन इक दिन मुझ बिन निकलेगा यह अनुमोदन पारित ही है मैं इस भ्रम में जूझ रहा हूँ मुझसे ही सब काज सधेंगे किन्तु कामकाजी जन मुझको दो ही दिन में बिसरा देंगे विस्मृतियों के वरदानों पर यह दुनिया आधारित ही है इच्छा, स्वप्न, त्याग, भय, उन्नति ऋण, उपलब्धि, कीर्ति, यश, वैभव पुण्य, पाप, संबंध, सृजन, सुख विजय, शोक, स्वातंत्र्य,पराभव इन सब आभासी शब्दों पर सृष्टि कथा विस्तारित ही है © Chirag Jain : चिराग़ जैन