एक क़दम की चूक से सही दिशा में जो चले, हुए न कभी हताश एक क़दम की चूक से होता सत्यानाश © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल Related posts: जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह बाबुल का रोग अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है उसी तरह के रंग ना वो बचपन रहा स्मृतियाँ ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा भविष्य बदला-बदला लग रहा कल्पना लुका-छिपी का खेल सिर्फ़ अकेले चलने का मन है गौतम-सा सन्यास सपने में भी दीखता अब मोबाइल फोन जीवन नहीं मरा करता है प्रेम के पुजारी भीड़ मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई छिना न माखन, हाय