फ़ासला कम अगर नहीं होता

फ़ासला कम अगर नहीं होता
फ़ैसला उम्र भर नहीं होता

कौन सुनता मेरी कहानी को
ज़िक्र तेरा अगर नहीं होता

बात तर्के-वफ़ा के बाद करूँ
हौसला अब मगर नहीं होता

कैसे समझाऊँ मैं तुझे ऐ दिल
सामरी हर शजर नहीं होता

तेरी रहमत का जिस पे साया हो
ख़ुद से वो बेख़बर नहीं होता

कौन कहता है ज़िन्दगानी का
रास्ता पुरख़तर नहीं होता

‘मीत’ मिलते हैं राहबर तो बहुत
पर कोई हमसफ़र नहीं होता

© Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’