गोपियाँ

यूँ ही किसी तीर्थ-यात्रा के प्रसंग में नहीं केवल घूमने के उद्देश्य से ही जब घूमी थी मथुरा और वृंदावन ब्रज और नन्दग्राम तो सहसा एक प्रश्न ने आ घेरा था मुझे कि दूरी तो कुछ भी नहीं ब्रज और मथुरा में ….बस कुछ मील ही तो फिर क्यों नहीं जा पाईं गोपियाँ, मिलने कृष्ण से? रोती रहीं उम्र भर ब्रज में ही रह कर। माना नहीं थे यातायात के साधन तो भी पार की जा सकती थी दूरी पैदल चलकर ही और तब महसूस हुआ कि प्रश्न दूरी का था ही नहीं…. प्रेम में कोई बुलाए तो जाया जा सकता है सैंकड़ों मील दूर भी और यदि कोई छोड़ कर चला जाए तो हो जाते हैं पैर, मानो पत्थर ही ….प्रश्न दूरी का नहीं प्रेम के अभिमान का है! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग