हज़ार-हज़ार बाहों वाली नागार्जुन
भारतीय जनकवि का प्रणाम
सच न बोलना
पुलिस अफ़सर
मैं कैसे अमरित बरसाऊँ
उनको प्रणाम
कल और आज
नया तरीका
चमत्कार
कर दो वमन !
बातें
बेतवा किनारे-1
बेतवा किनारे-2
अभी-अभी हटी है
हमने तो रगड़ा है
प्रतिहिंसा ही स्थायी भाव है
पछाड़ दिया मेरे आस्तिक ने
कल्पना के पुत्र हे भगवान
तिकड़म के ताऊ
पीपल के पीले पत्ते
करवटें लेंगे बूँदों के सपने
छेड़ो मत इनको !
वह तो था बीमार
नाहक ही डर गई, हुज़ूर
ख़ूब फँसे हैं नंदा जी
बाकी बच गया अण्डा
Nagarjun : नागार्जुन