तुम खोज रहे हो अंधकार औरों के अन्तर में। अपने भीतर तो झाँको वहाँ अंधकार ही अंधकार है। डर गए, पुकार उठे ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ नहीं नहीं, प्रार्थना नहीं। जलाओ अपने भीतर एक नन्हा-सा दीया, अपने तन की माटी का, और भर दो उसमें चेतना रूपी तेल। सच कहते हो तेल में मिलावट है, होने दो, शुद्ध कर लेगी उसे मन की बाती जला कर जब स्वयं को ज्येर्तिमय कर देगी सम्पूर्ण जगत् को। एक बार जलाओ तो एक बार जलाओ तो। © Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर