जीत का तोरण

हम तुम्हारी जीत का तोरण उठाकर थक चुके हैं और जय जयकार करके दुख रहे हैं स्वर हमारे I ढह गये हम खोजते हैं योजनों तक योजनाएं अब धराशायी हुयी हैं स्वप्नजीवी कामनाएं, कल्पनाओं में चमकते वे सभी पुखराज ले लो और लौटा दो हमें बेडौल से पत्थर हमारे I जय सुनाई दे रही थी सिसकियाँ सुनते नहीं हैं जो न बहरा हो उसे हम क्यों भला चुनते नहीं हैं, हम अभागे भी गगन में पाँव धरना चाहते हैं या हमें आकाश दो या नोच डालो पर हमारे l मत सुनो हमको करो किंचित नहीं चिन्ता हमारी यदि न तुमसे हो सका तो आ गयी बारी हमारी, जब सड़क की राह में आँखें गयीं पथरा,अचानक गाँव से निकले सड़क पर आ गये हैं घर हमारे। © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल