झूठ की उम्र

बताया गया था हमें बचपन में कि लम्बी हो सकती है झूठ की उम्र लेकिन जीवित रहता है केवल सच! गाँठ बांध ली थी बुज़ुर्गों की यह सीख और सच ही बोला हर हाल में सब कुछ सह कर भी। लेकिन अब कचोटने लगा है एक प्रश्न कि लम्बी है झूठ की उम्र तो क्या करे सत्य? क्या वह करे केवल झूठ की उम्र बीतने का इंतज़ार! ये भी तो हो सकता है कि झूठ की इस लम्बी उम्र के दौरान वे सन्दर्भ ही न रहें जिनमें सत्य प्रमाणित कर स्वयं को, रहना चाहता था जीवित सदा के लिए। या फिर जीवित रहने का सपना लिए, मर न जाए सत्य, असमय ही अकाल-मृत्यु छोटी-सी आयु में ही! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग