जुगनू बोला चांद से जुगनू बोला चांद से, उलझ न यूँ बेकार। मैंने अपनी रोशनी, पाई नहीं उधार॥ © Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य Related posts: ये सोना-चांदी हटा तू पत्थर की ऐंठ है छोटा हूँ तो क्या हुआ दौलत की लत क्यों पड़े ये हवा, ये धूप, ये बरसात पहले-सी नहीं ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई सर न झुकाया, हाथ न जोड़े खुली खिड़की-सी लड़की हमने तो बस ग़ज़ल कही है महफ़िल में मेरा ज़िक्र मेरे बाद हो न हो अब न रहीं वो दादी-नानी ज़माना बदल गया नैना गिरवी रख लिये बाबुल का रोग अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक छिना न माखन, हाय पहला-पहला प्यार चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है बदला-बदला लग रहा एक क़दम की चूक से