ज्योति वाहक

सुबह होने को है फिर गड़ा दिए जाएंगे मेरी छाती पर दुघर्ष पंजे फिर नोचा जाएगा मेरा जिगर चट्टानों से बांध दिया गया है मुझे दिन भर चलता है दण्ड विधान रात को होता है नव निर्माण यही नियति है हर ज्योति वाहक की हर दिन तड़पना हर रात करना तैयारी अगले दिन फिर तड़पने की © Jagdish Savita : जगदीश सविता