मज़हब कोई ऐसा भी

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इन्सान को इन्सान बनाया जाए जिसकी ख़ुश्बू से महक जाए घर पड़ोसी का फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए आग बहती यहाँ गंगा में, ज़मज़म में भी कोई बतलाए कहाँ जा के नहाया जाए मेरा मक़सद है ये महफ़िल रहे रौशन यूँ ही ख़ून चाहे मेरा दीपों में जलाया जाए मेरे दु:ख-दर्द का तुम पर हो असर कुछ ऐसा मैं रहूँ भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है उदास ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए © Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’ फ़िल्म : सेंसर (2001) संगीतकार : जतिन ललित स्वर : विनोद राठौड़, रूप कुमार राठौड़, कविता सुब्रमण्यम, विजेयता पण्डित