मरणधर्मा सम्बन्ध

सम्बन्धों की ऊष्मा लिए
मन को मन से जोड़े
चले थे हम जिस यात्रा पर
नहीं हो पाई है
वह अभी पूरी

सम्भवत:
लक्ष्य ही नहीं
निर्धारित हो पाया सही
या फिर चलने लगे थे
विपरीत दिशा में
हम ही

हमें तो जाना था
मन से आत्मा की ओर
लेकिन लौटे हम देह पर
और देह का तो एक ही धर्म है,
कि वह मरणधर्मा है।

तो उस पर आधारित सम्बन्ध
रह भी कैसे सकता था जीवित
सदा के लिए?

© Sandhya Garg : संध्या गर्ग