तू पत्थर की ऐंठ है तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच। तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच॥ © Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य Related posts: छोटा हूँ तो क्या हुआ ये सोना-चांदी हटा दौलत की लत क्यों पड़े ये हवा, ये धूप, ये बरसात पहले-सी नहीं ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई सर न झुकाया, हाथ न जोड़े खुली खिड़की-सी लड़की हमने तो बस ग़ज़ल कही है ज़माना बदल गया नैना गिरवी रख लिये बाबुल का रोग अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक छिना न माखन, हाय भविष्य के फूल पहला-पहला प्यार चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है सागर का उपहास बदला-बदला लग रहा उसी तरह के रंग Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’