मुझको पुकारा नहीं गया

जिन रास्तों से मुझको पुकारा नहीं गया
उन पर कभी मैं दोस्त दुबारा नहीं गया

सागर की सम्त बढ़ती रही उम्र भर नदी
लहरों के साथ कोई किनारा नहीं गया

देखा था मुस्कुरा के मुझे उसने पहली बार
नज़रों से आज तक वो नज़ारा नहीं गया

हैरत के साथ उससे पशेमां हूँ आज भी
इक ख़्वाब था जो मुझसे सँवारा नहीं गया

तेरे बग़ैर उम्र तो मैंने गुज़ार दी
इक पल मगर सुकूँ से गुज़ारा नहीं गया

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण