मुक्तिबोध

मुक्तिबोध को पढ़ा पढ़ा क्या लड़े उस से बुद्धि की कुदाल से दीं अनेकों चोटें हाथ लगा क्या?- कंकड़ पत्थर कहीं-कहीं फूटी जलधार भी सींच दिया जिसने अन्तर का सूखापन खुदाई में निकले मृत आशाओं के पिंजर भग्न आस्थाओं के नगर ऊपर आसमान में भुट्टौ-सा हँसता रहा चांद काला चांद।   © Jagdish Savita : जगदीश सविता