पेड़ और पुत्र

जिस दिन बेटा पैदा हुआ रमलू ने इक पेड़ लगाया पेड़ और पुत्र दोनों को पाला-पोसा बड़ा किया अपने पैरों पर खड़ा किया। बेटे ने पढ़-लिखकर दूर देश की हवा खाई पेड़ ने आंगन के हृदय में जड़ें फैलाईं टहनी-टहनी पत्तियाँ पहनीं हरी-भरी छटा दी सारी जवानी आंगन में लुटा दी। एक दिन पेड़ के नीचे खटिया पर लेटे रमलू यूँ सोचे- अरसे से बिटवा की पाती ना आई पेड़ ने तभी एक पत्ती गिराई नर्म-कोमल पत्ती ने बिटवा के छुटपन की यादें जगा दीं रमलू की ऍंखियों में बून्दी टिमटिमा दी। पेड़ ने एक टंगी खड़े रहकर धूप-गर्मी सहकर रमलू को छाँह दी चूल्हे के पेट में जाने कितनी बाँह दी। और जब रमलू का अन्त समय आया आस-पास कहीं नहीं बेटे की सूरत न बेटे का साया तब पेड़ ने ही अंतिम फ़र्ज़ भी निभाया चिता पर रमलू के संग लेटा पाया। © Baghi Chacha : बाग़ी चाचा