मैं अपने छंद सुनाता हूँ

जो आये थे इस धरती पर इक राह दिखा कर चले गए जो सबको नवल रोशनी दे वो दीप जला कर चले गए हाँ गूंज रहा हर ओर आज उद्बोधन उनका जन-जन में आँखें आँसू से भर उठती जगती उनकी श्रद्धा मन में हो गए अमर दे प्राण दान माँ की बलिवेदी पर अपना कर गए पूर्ण जो देखा था स्वर्णिम आज़ादी का सपना कुर्बानी की राहों पर हाँ हिम्मत से चलने वालों पर मैं अपने छंद सुनाता हूँ इतिहास बदलने वालों पर जब नाम गूंजता है उनका श्रद्धा से सर झुक जाते हैं शोणित की गति हो तेज़ उठे जब याद वीर वो आते हैं इस भारत माता के सपूत योद्धा अतुलित बलिदानी थे गोरों के घुटने टिकवाए अद्भुत अचूक सेनानी थे वो अथक लड़े बन शूरवीर करने को युग का परिवर्तन इस मातृभूमि पर लुटा दिया उन वीरों ने सारा जीवन रण में बन बिजली टूट पड़े भारत को छलने वालों पर मैं अपने छंद सुनाता हूँ इतिहास बदलने वालों पर जलती थी भारत की धरती अंग्रेजी अत्याचारों से भारतवासी महरूम रहे सत्ता के सब अधिकारों से लगता था मेरा देश, मुल्क़ कायरता और ग़ुलामी का सर झुका झेलते थे सारे हाँ ये कलंक बदनामी का तब उदित हुए योद्धा विचित्र, चमके बनकर इक अंगारा थर-थर-थर हिला दिया मिलकर अंग्रेजों का शासन सारा क्या और लिखूँ मैं आंधी-तूफानों में पलने वालों पर मैं अपने छंद सुनाता हूँ इतिहास बदलने वालों पर जय-जय-जय अमर शहीदों तुम भारत में जन-जन के प्यारे है नमन तुम्हें शत बार नमन चमके जग में सब से न्यारे यह सारा भारत शीश झुकाता, ऐसे वीर सिपाही तुम हाँ अमर रहोगे कुर्बानी के पथ के © Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’