खुद को बहलाना अच्छा

यूँ खुद को बहलाना अच्छा गीत बना ‘ग़म’ गाना अच्छा श्क़ हो जाए अगर किसी पर फिर उसको आज़माना अच्छा सबसे हाथ मिलाकर चलता होता अगर ज़माना अच्छा खुद महफ़िल में आगे आकर बिगड़ी बात बनाना अच्छा अन्धकार से लड़ना है तो घर-घर दीप जलाना अच्छा अगर किसी पर दिल आ जाए उस पर जान लुटाना अच्छा लुटा हुआ मक़तूल कहेगा होता नहीं खज़ाना अच्छा इक उसूल, इक मंज़िल तो है मुझसे तो दीवाना अच्छा बिटिया यूँ ख़ुश हो जाएगी बेमतलब डर जाना अच्छा हर इंसां से लड़ने से तो ख़ुद को ही समझाना अच्छा बाद इतना कहने के ‘अद्भुत’ मक़ता लिख, सो जाना अच्छा © Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’