धूप में

आजकल यूँ घुला है ज़हर धूप में पल में धुंधला गई हर नज़र धूप में जो अंधेरे में बरसों से गुमनाम था आते ही हो गया बेबसर धूप में उसने शायद सियासत की परवाह न की बस तभी है अकेला वो घर धूप में छाँव गाँवों में पीपल की हो जायेगी पर जलेगा बहुत ये शहर धूप में शब तो रहती है वीरान ही देखिये आज होने लगा हर कहर धूप में वक़्त ले आया है हमको किस मोड़ पर लग रहा है अंधेरों का डर धूप में ना ही यादें किसी की न साथी कोई कितना तनहा हुआ है सफ़र धूप में सच के साए में ‘अद्भुत’ जला आशियाँ हमको रहना पड़ा उम्र भर धूप में © Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’