मैं सही पथ पर न था

ये है सच मंज़िल की ख़ातिर मैं सही पथ पर न था पर मैं ये कहता नहीं कि साथ में रहबर न था देखने की इसलिए मैं कर सका हिम्मत नहीं नूर था नज़रों में लेकिन क़ाबिले-मंज़र न था उन कलाकारों ने नेता बस बुलाए इसलिए क्योंकि उनके पास सर्कस में कोई जोकर न था वो अधूरा रह गया यूँ ज़िन्दगी में देखिये दिल था उसके पास लेकिन साथ में दिलबर न था बात तो उसने यूँ की थी जैसे क़ातिल मैं ही हूँ थी ग़नीमत इतनी ही इल्ज़ाम बस मुझ पर न था दाग़ चेहरे के दिखाकर भी वो ‘अद्भुत’ बच गया आइना था सामने पर हाथ में पत्थर न था © Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’