अब हमारी प्यास रीती!

ओ लबालब नेह से भरते, उफ़नते, टूटते तट अब हमारी प्यास रीती! तब तुम्हारे ही लिए थी, ओस तिनके से चुराई बूंद बरखा की सहेजी, याद से सांसे भिंगाई अब नयन के गांव में कोई नहीं रहता तुम्हारा आंख के हर एक आंसू की हुई दुख से सगाई अनसुनी कुछ यचनाओं पर ह्रदय को कोसना मत, जो गई, वो बात बीती! भाग्य है सबका, तुम्हारा दोष कुछ भी तो नहीं है जो हमारा था, कहीं है, जो तुम्हारा था, कहीं है आज स्वीकारो यही अंतिम निवेदन वेदना का स्वप्न जो मिलके जना था, कल उसी की तेरहीं है हो गए हमसे पराजित आज जीवन और तर्पण, पर विरह की रात जीती! आज हममें और तुममें प्रेम दुहराया गया है रो दिए जब-जब बिछड़कर, तब हमें गाया गया है आज फिर निश्चित रचेगा प्रेम में इतिहास कोई देह से सम्बन्ध मन का आज ठुकराया गया है प्रेम है असहाय तब से, जब नियति ने भाग्यरेखा, पत्थरों के हाथ दी थी! © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला