आज धरती पर उजाला बांट कर दोषी हुए हम

आज धरती पर उजाला बांट कर दोषी हुए हम आज प्रतिबंधित हमीं हैं,कल हमीं प्रतिमान होंगे आज है संदेह तुमको चमचमाते कुन्दनों पर दंश का आरोप डाला है तुम्हीं ने चन्दनों पर पर हमें स्वीकार है ये भाग्य के सारे छलावे दोष रहता है शलभ का दीप के अभिनन्दनों पर आज जो हममें घटित है, कल वही इतिहास होगा आज निष्काषित हुए हैं, कल कहीं भगवान होंगे हां!हमें स्वीकार हमने आंधियों को बरगलाया बांध अनुशासन, हवा को है इशारों पर चलाया आज नीयत पर हमारी संशयों के बाण छोड़ो कल इन्हीं चिंगारियों से पूछना, घर क्यों जलाया? आज ढूंढो तुम हमारे आचरण में लाख अवगुण कल धरा पर एक हम ही बुद्ध का अनुमान होंगे रीतियाँ ऐसी रही हैं, विष बहुत सुकरात कम हैं पाप तो है वंशवादी, पर यहाँ अभिजात कम हैं रोक पाओगे बताओ किस तरह अन्याय जग में आज भी जब रावणों से राम का अनुपात कम है आज हम सच बोलने से दंड के भागी बने हैं कल हमारे ही लिए यश के सभी उपमान होंगे © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला