अंतिम साँस तक

ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक कोई तुरपन, कोई बटन टाँकता ही रहता है दर्जी। परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक सही-ग़लत, कुछ न कुछ लिखता ही रहता है परीक्षार्थी। अंतिम साँस टूटने तक चूक-अचूक निशाना साधे लड़ता ही रहता है फौजी। कोई नहीं डालता हथियार कोई नहीं छोड़ता आस अंतिम साँस तक। © Alka Sinha : अलका सिन्हा