झिलमिलाते हुए दिन रात हमारे लेकर

झिलमिलाते हुए दिन रात हमारे लेकर कौन आया है हथेली पे’ सितारे लेकर हम उसे आँखों की देहरी नहीं चढ़ने देते नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे लेकर रात लाई है सितारों से सजी कंदीलें सरनिगूँ दिन है धनक वाले नज़ारे लेकर एक उम्मीद बड़ी दूर तलक जाती है तेरी आवाज़ के ख़ामोश इशारे लेकर रात, शबनम से भिगो देती है चेहरा-चेहरा दिन चला आता है आँखों में शरारे लेकर एक दिन उसने मुझे पाक़ नज़र से चूमा उम्र भर चलना पड़ा मुझको सहारे लेकर © Alok Srivastava : आलोक श्रीवास्तव