धूप के पाले

घड़ी भर के लिए भी धूप के पाले नहीं पड़ते कई चेहरे हैं ऐसे जो कभी काले नहीं पड़ते लुटेरों में कहां दम था कि तिनका भी उठा पाते अगर इस घर के पीछे घर के रखवाले नहीं पड़ते जो ज़रवाले हैं, लुटने का उन्हीं को खौफ होता है फकीरों के घरों में आज भी ताले नहीं पड़ते न जाने कौन सा जादू है आखिर उनके तलवों में दहकती आग पे चलते हैं और छाले नहीं पड़ते अक़ीदत और करम के बीच कुछ दूरी रही होगी तेरे बंदों को वर्ना जान के लाले नहीं पड़ते कई फ़नकार गुमनामी की चादर ओढ़ लेते हैं सभी के नाम पे शोहरत के दोशाले नहीं पड़ते बहुत आराम से कटनी थी अपनी ज़िंदगी गौतम मेरे पीछे अगर आफत के परकाले नहीं पड़ते © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम