शायद कोई वजूद हो

चक्कर लगा के देख चुके आसमान का अब खौफ ही नहीं रहा अगली उड़ान का परछाइयों के बीच से ढूंढते हैं हम शायद कोई वजूद हो वहमो-गुमान का मेरी हरेक बात में शामिल है और बात मतलब निकालते रहो मेरे बयान का चारो तरफ है जाल बराबर बिछा हुआ खतरा बना हुआ है परिंदे की जान का बेचैनियों के बीच से होकर गुजर गया इक पल अगर मिला भी कभी इत्मिनान का उसकी नज़र गड़ी थी परिंदे की आंख पर हर तीर था निशाने पर उसके कमान का दीवारो-दर को दे गया अपने तमाम अक्स नक्शा बदल के रख दिया मेरे मकान का मुझमें सिमट के बैठ गया है जो एक शख्स किरदार बन गया है मेरी दास्तान का क्या जाने आज कौन सा मंजर दिखाई दे बदला हुआ है रंग अभी आसमान का गौतम हमारी बात का गर तू बुरा न मान हर लफ्ज़ ज बख्श दे अपनी ज़बान का © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम