मिल्कियत की जंग

मिल्कियत की जंग लड़ना ही फकत मकसद न हो मुल्क इक ऐसा बने जिसकी कोई सरहद न हो आनेवालों को जगह देनी जरूरी है बहुत पांव जो चाहे जमा ले पर कोई अंगद न हो वक़्त ने अबके अजब फरमान जारी कर दिया रात-दिन खटते रहो फिर भी कोई आमद न हो ऐसी तख्ती आजतक मैंने कहीं देखी नहीं नाम तो लिक्खा हो लेकिन उसके आगे पद न हो टूटकर मिलते चलें इक दूसरे से आज हम अबके जो बिछड़े तो फिर मिलना कभी शायद न हो बोझ धरती का बने रहने का कुछ हासिल नहीं किसलिए जीना अगर जीने का कुछ मकसद न हो सबको अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ है दोस्तो हर कोई फूले-फले कोई यहां बरगद न हो कामयाबी को पचाना सबके बूते का नहीं कोई चूहे से बने हाथी और उसमें मद न हो? ज़िंदगी अपनी है गौतम ऐसे कमरे की तरह जिसमें गद्दे तो बिछे हों पर कोई मसनद न हो © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम