कोई राहबर न था

अंधी सी इक डगर थी, कोई राहबर न था हम उसको ढूंढते थे उधर वो जिधर न था इतना कड़ा सफर था कि रूदाद क्या कहें हर सम्त सिर्फ धूप थी, कोई शजर न था अहबाब की कमी न थी राहे-हयात में लेकिन तुम्हारे बाद कोई मोतबर न था सुनने को सारे शह्र की सुनते थे हम मगर हमपे किसी की बात का कोई असर न था दरिया में डूबने का सबब कोई बता दे कश्ती के आसपास तो कोई भंवर न था हम जानते थे मौत ही मंज़िल है आखरी हमको किसी डगर पे भटकने का डर न था यूं तो वहां खुलूस की कोई कमी न थी उसकी गली में फिर भी हमारा गुज़र न था © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम