उड़ान बाक़ी है

जिसकी जितनी उड़ान बाक़ी है उतना ही आसमान बाक़ी है राज़ आँखों से खुल गया है मगर दिल में अब भी गुमान बाक़ी है मेरे हक़ में ही फ़ैसला होगा ये अभी इम्तिहान बाक़ी है वार तीरों के सब गए ख़ाली हाथ में बस कमान बाक़ी है सारी दुनिया तो देख ली हमने इक मुक़म्मल जहान बाक़ी है अब तो आ जा कि मेरी आँखों में और थोड़ी-सी जान बाक़ी है बात करता रहेगा हक़ की ‘मीत’ जब तलक तन में जान बाक़ी है © Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’