प्रेम पावन रहा

प्रेम पावन रहा प्रार्थना की तरह प्रेम के रूप कितने दिखाये गये, एक नाटक निभाते रहे उम्र भर रोज परदे उठाये गिराये गये। फूल सारे बिखर कर पुराने लगे चांद सूरज विरह गीत गाने लगे मेरे मन को सदा केलिये तोड़कर जब महावर भरे पाँव जाने लगे देखकर दृश्य वह नैन गीले हुये स्वप्न मेरे गली में बिछाये गये। साध कौमार्य सब कामनायें रहीं हरतरफ हर कदम वर्जनायें रहीं जिंदगी के अधूरे शिलालेख पर, नित्य अंकित कई वेदनायें रहीं अनपढ़ी व्यंजनायें लिखीं ही रहीं इस डगर पर कई लोग आये गये I घट रही जल रही देह-बाती लिखी सांझ का गीत गाया प्रभाती लिखी नित्य तेरा नया रूप देखा किया, नित्य तुमको नई एक पाती लिखी वह गली आज भी प्रश्न करती मिली पत्र मेरे जहाँ पर जलाये गये। © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल