गीत लिखो

गीत लिखो, युग कवि! गीत लिखो। पानी पर आग लिखो, सागर में प्यास से मरी हुयी मछली की पीर लिखो बार बार, इधर धार उधर धार, आस पास सागर का झाग लिखो, पानी पर आग लिखो युग के विपरीत लिखो गीत लिखो, युग कवि जन जन की पीर लिखो, रोता विलखता यह जनमानस देख देख माथे पर स्वयं आप, लिख लो जग का विलाप रोता और जागता कबीर लिखो, जन जन की पीर लिखो, गरमी में शीत लिखो, गीत लिखो, युग कवि भूख लिखो प्यास लिखो, ऊंची अटारी पर बैठे हुये राजा की नजरों के आस पास , नाच रही भूख प्यास, इस नग्न नर्तन को रास लिखो, भूख लिखो प्यास लिखो, हारी हर जीत लिखो, गीत लिखो, युग कवि © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल