तितलियों के पंख

तितलियों! जाना पड़े यदि, तो बरतना सावधानी, यह सुना है – उपवनों में तितलियों के पंख तोड़े जा रहे हैं। दम्भ में डूबे हुए कब देखते अपने पराए घूमते हैं वह स्वयं की कीर्ति का तोरण उठाए, अश्वमेधी कामनाओं ने नई रच दी कहानी, यह सुना है – पुरश्चरणों के नये हर रोज़ घोड़े जा रहे हैं। एक जुगनू के लिए मरता रहा कोई पतंगा और उनके साथ आश्वासन भरी आकाशगंगा, अंधकारों के विषय में कल हुयी आकाशवाणी, यह सुना है – सूर्य सारे रात की ही ओर मोड़े जा रहे हैं। मेघ बंदी हैं न जाने किसलिए किसने किए हैं और नदियों पर घने पहरे लगे ये किस लिए हैं, आप लेने जा रहे हो आज सरयू तीर पानी, यह सुना है – प्यास पर फिर शब्दभेदी वाण छोड़े जा रहे हैं | © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल