मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की आप कहते हैं इसे जिस देश का स्वर्णिम अतीत वो कहानी है महज प्रतिरोध की, संत्रास की यक्ष-प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी ये परीक्षा की घड़ी है क्या हमारे व्यास की इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आख़िर क्या दिया सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की याद रखिए, यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार होता है परिपाक धीमी आँच पर अहसास की © Adam Gaundavi : अदम गौंडवी