कविता की क्या परिभाषा दूँ

कविता की क्या परिभाषा दूँ कविता है मेरा आधार भावों को जब-जब खाता हूँ तब लेता हूँ एक डकार वही स्वयं कविता बन जाती साध्य स्वयं बनता साकार उसके शिर पग रख चलता हूँ तब बहती है रस की धार अनुचरी बन वह चलती है कभी न बनती शिर का भार अनुचरी है नहीं सहचरी कभी-कभी करता हूँ प्यार थक जाता हूँ चिंतन से तब जुड़ जाता है उससे तार © Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ