गीत मेरे किसी से न कहना

गीत मेरे किसी से न कहना कभी दर्द इतना बढ़ा हिचकियाँ बंध गईं शब्द में ढल गया जो वही है बहुत बस उसी से कई सुबकियां बंध गईं इक रंगोली सजाने नयन द्वार पर रातभर आंसुओं से है आंगन धुला इक पहर जुगनुओं को सुलगना पड़ा तब कहीं एक रश्मि का घूंघट खुला दिख रहें हैं सभी को चरण राम के पत्थरों में कई देवियां बंध गईं जीतने की सहजता सभी से मिली हारने की कसक अनछुई रह गईं मुस्कुराहट बनीं मीत सबकी यहां और पीड़ा सदा रह गईं अनकही मौन के आखरों को लिए गर्भ में उँगलियों में कई चिट्ठियां बंध गईं नैन मूँदें तुम्हें देखकर हर दफ़ा भावना ने हमेशा पुकारा तुम्हें वो सहज तो हमें भी कभी ना हुआ जो कठिन से हुआ था गंवारा तुम्हें घर का सौहार्द बच जाए इस चाह में क्यारियों में कई तुलसियाँ बंध गईं © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला