तुम गंध बनी, मकरंद बनी

तुम गंध बनी, मकरंद बनी, तुम चन्दन वृक्ष की डाल बनी
अलि की मधु-गुंजन, भाव भरे, मन की मनभावन चाल बनी
कभी मुक्ति के पावन गीत बनी, कभी सृष्टि का सुन्दर जाल बनी
तुम राग बनी, अनुराग बनी, तुम छंद की मोहक ताल बनी

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी